Saturday 31 December 2011

आधी हकीकत आधा फसाना 1



राज कपूर के संगीतकार

रविवार, ४ दिसम्बर २०११

ओल्ड इस गोल्ड श्रृंखला # 801/2011/241


‘जिन्दा हूँ इस तरह कि गम-ए-ज़िन्दगी नहीं...’ : राम गांगुली


‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ के सभी संगीत-प्रेमियों का, मैं कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से आरम्भ हो रही श्रृंखला “आधी हकीकत आधा फसाना” के माध्यम से हम भारतीय सिनेमा के एक ऐसे स्वप्नदर्शी व्यक्तित्व पर चर्चा करेंगे, जिसने देश की स्वतन्त्रता के पश्चात कई दशकों तक भारतीय जनमानस को प्रभावित किया। सिनेमा के माध्यम से समाज को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले भारतीय सिनेमा के पाँच स्तम्भों- वी. शान्ताराम, विमल राय, महबूब खाँ और गुरुदत्त के साथ राज कपूर का नाम भी एक कल्पनाशील फ़िल्मकार के रूप में इतिहास में दर्ज़ हो चुका है। १४दिसम्बर को इस महान फ़िल्मकार के ८७वीं जयन्ती है। इस अवसर के लिए श्रृंखला प्रस्तुत करने की जब योजना बन रही थी तब ‘ओल्ड इज़ गोल्ड’ के सम्पादक सजीव सारथी और मेजवान सुजोय चटर्जी की इच्छा थी कि इस श्रृंखला में राज कपूर की फिल्मों के गीतों को एक नये कोण से टटोला जाए। आज से आरम्भ हो रही श्रृंखला “आधी हकीकत आधा फसाना” में हमने दस ऐसे संगीतकारों के गीतों को चुना है, जिन्होने राज कपूर के आरम्भिक दशक की फिल्मों में उत्कृष्ट स्तर का संगीत दिया था। ये संगीतकार राज कपूर के व्यक्तित्व से और राज कपूर इनके संगीत से अत्यन्त प्रभावित हुए थे।

राज कपूर के फिल्म-निर्माण की लालसा का आरम्भ फिल्म ‘आग’ से हुआ था, जिसके संगीतकार राम गांगुली थे। दरअसल यह पहली फिल्म राज कपूर के भावी फिल्मी जीवन का एक घोषणा-पत्र था। ठीक उसी प्रकार, जैसे लोकतन्त्र में चुनाव लड़ने वाला प्रत्याशी अपने दल का घोषणा-पत्र जनता के सामने प्रस्तुत करता है। ‘आग’ में जो मुद्दे लिये गए थे, बाद की फिल्मों में उन्हीं मुद्दों का विस्तार था, और ‘आग’ की चरम परिणति ‘मेरा नाम जोकर’ में हम देखते हैं। ‘आग’ का नायक नाटक और रंगमंच के प्रति दीवाना है। फिल्म में राज कपूर का एक संवाद है- ‘मैं थियेटर को उस ऊँचाई पर ले जाऊँगा, जहाँ लोग उसे सम्मान की दृष्टि से देखते हैं...’। राज कपूर अपने पिता के ‘पृथ्वी थियेटर’ मे एक सामान्य कर्मचारी के रूप में कार्य करते थे। ‘आग’ का कथ्य यहीं से उपजा था। केवल कथ्य ही नहीं, पहली फिल्म के संगीतकार भी राज कपूर को ‘पृथ्वी थियेटर’ से ही मिले थे- राम गांगुली के रूप में। पृथ्वीराज कपूर की नाट्य-प्रस्तुतियों के संगीतकार राम गांगुली ही हुआ करते थे।

५अगस्त, १९२८ को जन्में राम गांगुली को सितार-वादन की शिक्षा उस्ताद अलाउद्दीन खाँ से प्राप्त हुई थी। मात्र १७वर्ष की आयु से ही उन्होने मंच-प्रदर्शन करना आरम्भ कर दिया था। संगीतकार आर.सी. बोराल ने उन्हें न्यू थिएटर्स में वादक के रूप मे स्थान दिया। बाद में पृथ्वीराज कपूर ने अपने नाटकों में संगीत निर्देशन के लिए उन्हें ‘पृथ्वी थियेटर’ में बुला लिया। ‘पृथ्वी थियेटर’ के ही अत्यन्त लोकप्रिय नाटक ‘पठान’ में अभिनय करते हुए राज कपूर ने राम गांगुली का संगीतबद्ध किया गीत- ‘हम बाबू नये निराले हैं...’ गाया था। अपने इन्हीं प्रगाढ़ सम्बन्धों के कारण राज कपूर ने अपनी पहली निर्मित, अभिनीत और निर्देशित फिल्म ‘आग’ के संगीतकार के रूप में राम गांगुली को चुना। फिल्म ‘आग’ के गीत ‘काहे कोयल शोर मचाए...’, ‘कहीं का दीपक कहीं की बाती...’, ‘रात को जो चमके तारे...’ आदि अपने समय में लोकप्रिय हुए थे, किन्तु जो लोकप्रियता ‘ज़िंदा हूँ इस तरह कि ग़म-ए-ज़िंदगी नहीं...’ गीत को मिली वह आज तक कायम है। आज भी यह गीत सुनने वालों को रोमांचित कर देता है। बाद में वी. शान्ताराम की फिल्म ‘सेहरा’ में संगीतकार के रूप में चर्चित सुप्रसिद्ध शहनाई और बांसुरी वादक रामलाल ने इस गीत में अत्यंत संवेदनशील बांसुरी वादन किया था। इसके गीतकार बहजाद लखनवी और गायक थे, राज कपूर के सबसे प्रिय गायक मुकेश। स्वप्नदर्शी सिने-पुरुष राज कपूर को उनकी जयन्ती के उपलक्ष्य में आयोजित इस श्रृंखला का प्रारम्भ करते हुए आइए, सुनते हैं, निर्माता, निर्देशक और अभिनेता के रूप में बनाई गई उनकी पहली फिल्म ‘आग’ का सर्वाधिक लोकप्रिय गीत-

गीत -‘जिन्दा हूँ इस तरह कि...’ : फिल्म –आग : संगीत –राम गांगुली
http://www.youtube.com/watch?v=QYL3jkDicRI&feature=relmfu

क्या आप जानते हैं... कि राज कपूर की सर्वाधिक २० फिल्मों में संगीत निर्देशन करने वाले शंकर-जयकिशन, फिल्म ‘आग’ में राम गांगुली के संगीत दल में क्रमशः तबला और हारमोनियम वादक थे।

कृष्णमोहन मिश्र

2 टिप्पणियाँ


बेनामी sujoy chatterjee ने कहा…
bahut badhiya krishnamohan ji.
४ दिसम्बर २०११ ८:४३ अपराह्न
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ब्लॉगर AVADH ने कहा…
किसी का उत्तर न देख कर मैं अब कोशिश कर रहा हूँ. संगीतकार: अनिल बिस्वास अवध लाल
५ दिसम्बर २०११ १:०७ अपराह्न



आधी हकीकत आधा फसाना 2

सोमवार, ५ दिसम्बर २०११ 
ओल्ड इस गोल्ड श्रृंखला # 802/2011/242

‘आई गोरी राधिका बृज में...’ : नीनू मजूमदार
स्वप्नदर्शी फ़िल्मकार राज कपूर के संगीतकारों पर केन्द्रित श्रृंखला “आधी हकीकत आधा फसाना” की दूसरी कड़ी में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, अपने पाठकों-श्रोताओं का स्वागत करता हूँ। आज हम राज कपूर द्वारा अभिनीत एक फिल्म के माध्यम से फिल्म-संगीत के प्रति उनकी सोच को स्पष्ट करने का प्रयास करेंगे। राज कपूर के निकट के लोगों का मानना था कि उनके मन में पहले ध्वनियों का जन्म होता था, फिर दृश्य-संरचना का विचार विकसित होता था। एक धुन या दृश्य राज कपूर के मन के तहखाने में वर्षों तक दबी रहती थी। सही समय और सही प्रसंग में राज कपूर उनका उपयोग कर फिल्म को विशिष्ट बना देते थे। संगीतकार लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल ने राज कपूर की संगीत-क्षमता के बारे में एक अवसर पर कहा था- ‘यदि वे संगीतकार बनना चाहते तो सर्वश्रेष्ठ संगीतकार सिद्ध होते...’।

राज कपूर को संगीत के प्रति लगाव बचपन से ही था। उनकी माँ रमाशरणी देवी लोकगीतों की विदुषी थीं। उनके पास संस्कार गीतों का भंडार था। राज कपूर पर अपनी माँ के लोकगीतों का विशेष प्रभाव पड़ा। किशोरावस्था में राज कपूर अपने पिता पृथ्वीराज कपूर के साथ नियमित रूप से कोलकाता के न्यू थियेटर के संगीत कक्ष में जाया करते थे, वहाँ आर.सी. बोराल और सहगल जैसे दिग्गज रियाज किया करते थे। न्यू थियेटर के संगीत कक्ष में ही राज कपूर ने तबला बजाना और रवीन्द्र संगीत गाना सीखा। अपनी युवावस्था के आरम्भिक दिनों में राज कपूर ने विधिवत शास्त्रीय संगीत भी सीखा था। यहीं पर मुकेश भी संगीत सीखने आते थे। इन गुरु-भाइयों की आजीवन मित्रता का बीजारोपण भी यहीं पर हुआ। संगीत के प्रति असीम श्रद्धा होने के कारण दृश्य संरचना से पहले राज कपूर के मन में ध्वनियों का जन्म हो जाता था। उनकी पूरी फिल्म एक ‘ऑपेरा’ की तरह होती थी। फिल्म का पूरा कथानक संगीत की धुरी के चारो ओर घूमता है। राज कपूर व्यक्ति को भूल सकते थे, किन्तु एक सुनी हुई धुन कभी नहीं भूलते थे।

१९७८ में राज कपूर द्वारा निर्मित-निर्देशित फिल्म ‘सत्यं शिवं सुन्दरम्’ प्रदर्शित हुई थी। इस फिल्म का एक गीत ‘यशोमति मैया से बोले नन्दलाला...’ बेहद लोकप्रिय पहले भी था और आज भी है। इसके गीतकार नरेन्द्र शर्मा और संगीतकार लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल थे। इस सुमधुर गीत की धुन के लिए लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल को भरपूर श्रेय दिया गया था। बहुत कम लोगों का ध्यान इस तथ्य की ओर गया होगा कि इस मोहक गीत की धुन के कारक स्वयं राज कपूर ही थे। दरअसल राज कपूर ने १९४८ में प्रदर्शित फिल्म ‘गोपीनाथ’ में अभिनय किया था। इस फिल्म को राज कपूर और नायिका तृप्ति मित्रा के उत्कृष्ट अभिनय और संगीतकार नीनू मजुमदार के मधुर संगीत के लिए सदा याद रखा जाएगा। फिल्म के गीतों को स्वयं नीनू मजुमदार, मीना कपूर और शमशाद बेगम ने स्वर दिया था। फिल्म के एक युगल गीत- ‘बाली उमर पिया मोर...’ में शमशाद बेगम के साथ राज कपूर का स्वर भी है। फिल्म ‘गोपीनाथ’ का जो गीत हम आज आपको सुनवाने जा रहे हैं, उसके बोल हैं- ‘आई गोरी राधिका, ब्रज में बलखाती...’। इस गीत को नीनू मजुमदार और मीना कपूर ने स्वर दिया है। राग भैरवी पर आधारित सूरदास का यह पद राज कपूर पर फिल्माया नहीं गया था, इसके बावजूद इसकी प्यारी धुन उनके मन के अन्तस्थल में तीन दशको तक सुरक्षित दबी पड़ी रही। १९७८ में जब राज कपूर के निर्देशन में फिल्म ‘सत्यं शिवं सुन्दरम्’ का निर्माण हो रहा था, तीन दशक पुरानी यह धुन उनकी स्मृतियों के तहखाने से निकल कर बाहर आई। कवि नरेन्द्र शर्मा ने इस धुन को शब्दों से, लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल ने संगीत वाद्यों से और लता मंगेशकर व मन्ना दे ने स्वरों से सजाया।

लीजिए, आप सुनिये राज कपूर द्वारा अभिनीत, फिल्म ‘गोपीनाथ’ का गीत- ‘आई गोरी राधिका, ब्रज में बलखाती...’, और तुलना कीजिए राज कपूर द्वारा निर्मित-निर्देशित फिल्म ‘सत्यं शिवं सुन्दरम्’ के उस लोकप्रिय गीत से।

गीत -‘आई गोरी राधिका, ब्रज में बलखाती...’ : फिल्म – गोपीनाथ : संगीत – नीनू मजुमदार

http://www.youtube.com/watch?v=M-JYQXbjKV4

क्या आप जानते हैं... कि फिल्म ‘प्रेम रोग’ के गीत ‘ये गलियाँ, ये चौबारा...’ राज कपूर ने ४० वर्ष पूर्व अपनी एक प्रेमिका से सुना था। चूंकि लड़की के पिता राज कपूर को घरजमाई बनाना चाहते थे इसलिए यह प्रेम सम्बन्ध, विवाह में परिवर्तित नहीं हो सका।

कृष्णमोहन मिश्र

6 टिप्पणियाँ


ब्लॉगर सजीव सारथी ने कहा…
ये गाना मैंने आज पहली बार सुना, वाकई एकदम धुन मिलती जुलती है...कमाल का शोध है कृष्ण मोहन जी. 
५ दिसम्बर २०११ ६:३७ अपराह्न
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ब्लॉगर कृष्णमोहन ने कहा…
धन्यवाद !
५ दिसम्बर २०११ ९:१२ अपराह्न
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ब्लॉगर indu puri ने कहा…
बहारों ने जिसे छेड़ा .....हा हा हा फ़साना है इसमें मेरी जवानी का... सुनहरे दिन फिल्म का गाना है जी, उत्तर सही है तो मैंने बताया है और गलत है तो........... अमित...अमित ने फोन पर बताया है हा हा हा मैं बिलकुल झूठ नही बोलती जी.एकदम सच्ची हूँ. अमित ऐसे उत्तर टीपाना चाहिए भला?
५ दिसम्बर २०११ १०:११ अपराह्न
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ब्लॉगर
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ब्लॉगर अमित तिवारी ने कहा…
एकदम जबरदस्त. मैंने भी पहली बार सुना ये गाना. साधुवाद.
६ दिसम्बर २०११ १:२२ पूर्वाह्न
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ब्लॉगर indu puri ने कहा…
mera kament kahan chala gaya bhai ? 'sunahare din' kahan gaye?
६ दिसम्बर २०११ १:३५ पूर्वाह्न
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ब्लॉगर AVADH ने कहा…
वाह, कृष्ण मोहन जी, वाह! सजीव जी का कहना बिलकुल दुरुस्त है. कमाल कर दिया आपने. वैसे यह बात कई बार कही जा चुकी है कि राज कपूर जी की फिल्मों में असली संगीत उन्हीं का होता था. यही कारण है कि कई बाद की फिल्मों में उन्हीं की पुरानी फिल्मों के पार्श्व संगीत की धुनों का कई बार मुखड़े या अंतरों में प्रयोग किया जाता रहा है. जब भारतीय फिल्म जगत की दो मूर्धन्य हस्तियाँ जीवित थीं तब मैंने एक स्थान पर पढ़ा था कि सत्यजित राय जी ने एक हिंदी फिल्म की योजना बनायीं थी और राज कपूर साहेब को इस बात पर राज़ी भी कर लिया था कि उस फिल्म में वोह संगीत देंगे. अवध लाल
६ दिसम्बर २०११ १२:४७ अपराह्न
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आधी हकीकत आधा फसाना 3




मंगलवार, ६ दिसम्बर २०११

ओल्ड इस गोल्ड श्रृंखला # 803/2011/243



बहारों ने जिसे छेड़ा... :  ज्ञानदत्त

धी हक़ीक़त आधा फसाना श्रृंखला के अन्तर्गत इन दिनों हम सुप्रसिद्ध फ़िल्मकार राज कपूर की फिल्म-यात्रा के कुछ ऐसे पड़ावों की चर्चा कर रहे हैं, जिनमें संगीत के प्रति उनके अनुराग और चिन्तन का रेखांकन हुआ है। पिछले अंकों में हम यह चर्चा कर चुके हैं कि राज कपूर को संगीत संस्कारगत प्राप्त हुआ था। बचपन में अपनी माँ से, किशोरावस्था में न्यू थिएटर्स के संगीत कक्ष से और युवावस्था में अपने पिता के पृथ्वी थिएटर के नाटकों से प्राप्त संगीत राज कपूर के रग-रग में बसा हुआ था। अपनी पहली फिल्म आग के लिए उन्होने पृथ्वी थियेटर के संगीतकार राम गांगुली को चुना था। इस फिल्म में शंकर और जयकिशन, संगीत दल में मात्र एक वादक थे। अपनी अगली फिल्म बरसात के लिए राज कपूर ने शंकर-जयकिशन को ही संगीतकार के रूप में चुना। कहने की आवश्यकता नहीं कि इस फिल्म का संगीत बेहद लोकप्रिय हुआ था। बरसात (१९४९) से लेकर मेरा नाम जोकर (१९७०) तक, पूरे २१ वर्षों तक शंकर-जयकिशन, राज कपूर की २० फिल्मों के सफल संगीतकार रहे। इसके बाद आर.के. की फिल्मों में बॉबी’, सत्यं शिवं सुन्दरम्, प्रेम रोग और प्रेम ग्रन्थ संगीतकार लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल तथा राम तेरी गंगा मैली और हिना के संगीतकार रवीन्द्र जैन थे। इस श्रृंखला में हम राज कपूर के सर्वाधिक लोकप्रिय संगीतकारों के स्थान पर उनके फिल्मी सफर के प्रारम्भिक एक दशक के उन संगीतकारों की चर्चा कर रहे हैं, जिनका गहरा प्रभाव राज कपूर पर पड़ा।   
१९४९ में जब राज कपूर फिल्म बरसात के निर्माण में व्यस्त थे उसी समय वे तीन अन्य निर्माताओं की फिल्मों- सुनहरे दिन’, परिवर्तन और अन्दाज़ में अभिनेता के रूप में भी कार्य कर रहे थे। इतनी व्यस्तता के बावजूद उन्होने किसी भी फिल्म में अपने अभिनय का स्तर गिरने नहीं दिया। इस वर्ष की फिल्मों में से आज हम फिल्म सुनहरे दिन में राज कपूर की भूमिका की और फिल्म के एक गीत के माध्यम से इस फिल्म के विस्मृत संगीतकार ज्ञानदत्त की चर्चा करेंगे। १९४९ में प्रदर्शित फिल्म सुनहरे दिन का निर्माण जगत पिक्चर्स ने किया था, जिसके निर्देशक सतीश निगम थे। फिल्म में राज कपूर की भूमिका एक रेडियो गायक की थी। अपने श्रोताओं के बीच यह गायक चरित्र बेहद लोकप्रिय है। इस फिल्म का संगीत वर्तमान में लगभग विस्मृत संगीतकार ज्ञानदत्त ने दिया था।
चौथे और पाँचवे दशक के चर्चित संगीतकार ज्ञानदत्त, का फिल्मी सफर रणजीत मूवीटोन से आरम्भ हुआ था। १९३७ में प्रदर्शित तूफानी टोली उनकी पहली फिल्म थी। श्रृंगार रस से परिपूर्ण संगीत रचने में उनका कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं था। उनकी चौथे दशक की फिल्मों की प्रमुख गायिका वहीदन बाई (अपने समय की सुप्रसिद्ध अभिनेत्री निम्मी की माँ) थीं। संगीत की दृष्टि से अनेक सफल फिल्मों की सगीत रचना करने के बाद पाँचवे दशक के अन्त में ज्ञानदत्त ने राज कपूर द्वारा अभिनीत फिल्म सुनहरे दिन की संगीत-रचना की थी। इस फिल्म का संगीत ज्ञानदत्त के लिए विशेष उल्लेखनीय रहा। लोकप्रियता की दृष्टि से उस वर्ष की फिल्मों में राज कपूर द्वारा निर्मित, निर्देशित और अभिनीत बरसात तथा केवल अभिनीत फिल्म सुनहरे दिन के गीत शीर्ष पर थे। सुनहरे दिन का नायक चूँकि रेडियो-गायक है, अतः ज्ञानदत्त ने इन गीतों में वाद्यवृन्द (आर्केस्ट्रा) का अत्यंत आकर्षक प्रयोग किया है। इस फिल्म में ज्ञानदत्त ने राज कपूर के लिए मुकेश को गायक के रूप में अवसर दिया था। मुकेश और राज कपूर एक ही गुरु से संगीत सीखने जाया करते थे। फिल्म आग में मुकेश और राज कपूर की जोड़ी साथ थी, किन्तु इन दोनों के आवाज़ की स्वाभाविकता का अनुभव फिल्म सुनहरे दिन के गीतों से हुआ। फिल्म में मुकेश के साथ सुरिन्दर कौर और शमशाद बेग़म की आवाज़ें हैं। फिल्म सुनहरे दिन के गीतों में मुकेश और सुरिंदर कौर की आवाज़ों में- दिल दो नैनों में खो गया...’, लो जी सुन लो...’, मुकेश और शमशाद बेग़म के स्वरों में- मैंने देखी जग की रीत... अत्यन्त लोकप्रिय गीत सिद्ध हुए, रन्तु जो लोकप्रियता मुकेश के एकल स्वर में प्रस्तुत गीत- बहारों ने जिसे छेड़ा है वो साजे जवानी है... को मिली, उससे अपने समय में यह एक उल्लेखनीय गीत बन गया थाआज हम आपको यही गीत सुनवाएँगे। सुनहरे दिन संगीतकार ज्ञानदत्त के फिल्मी सफर की सफलतम फिल्म थी। इस फिल्म के बाद ज्ञानदत्त की संगीतबद्ध फिल्में व्यावसायिक रूप से असफल होती गई। अन्ततः वर्ष १९६५ में फिल्म जनम-जनम के साथी के साथ उन्होने अपने संगीतकार-जीवन से विराम ले लिया। ३दिसम्बर, १९७४ को संगीतकार ज्ञानदत्त का निधन हुआ था। आइए आज हम आपको सुनवाते हैं, ज्ञानदत्त द्वारा संगीतबद्ध वह ऐतिहासिक गीत, जिसने गायक मुकेश और अभिनेता राज कपूर की जोड़ी को स्थायित्व दिया। गीतकार हैं, शेवन रिजवी।

गीत -‘बहारों ने जिसे छेड़ा है...’ : फिल्म – सुनहरे दिन : संगीत – ज्ञानदत्त


क्या आप जानते हैं... कि वर्ष १९४९ में फिल्म सुनहरे दिन और बरसात के साथ-साथ राज कपूर ने दिलीप कुमार और नरगिस  के साथ फिल्म अंदाज़ में भी अभिनय किया था। इस फिल्म के संगीतकार नौशाद थे। फिल्म के एक गीत- उठाए जा उनके सितम... की रिकार्डिंग के समय राज कपूर भी स्टुडियो में उपस्थित थे। उन्होने जब लता मंगेशकर के स्वर सुने तो वहीं स्टुडियो में ही अपनी फिल्म बरसात में गाने के लिए राजी कर लिया।

कृष्णमोहन मिश्र
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3 टिप्पणियाँ


ब्लॉगर indu puri ने कहा…
खयालों मे किसी के इस तरह बिना बुलाये आओगे तो ठुकराये ही जाओगे, बाबु! दुनिया का दस्तूर है. समझ नही आई बात? मेरे बावरे नैन क्या कहते हैं?  हा हा हा... इनसे पूछो. मैं न बोलू तो यह बोल देते है. सब कुछ.रोशन जी के संगीत को भी पहचानते हैं. सच्ची.  ऐसिच हूँ मैं भी तो हा हा हा...
६ दिसम्बर २०११ ९:३४ अपराह्न
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ब्लॉगर AVADH ने कहा…
अरे इंदु बहिन. दुनिया का दस्तूर यही है, यह बात तो ठीक है, पर कभी कभी 'गीता' के सन्देश को भी तो याद करना चाहिए. अवध लाल
७ दिसम्बर २०११ १:०७ अपराह्न
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ब्लॉगर कृष्णमोहन ने कहा…
वाह ! इन्दु जी और अवध जी, लगता है, मित्रों का पिछला दौर वापस लौट रहा है।
७ दिसम्बर २०११ २:४२ अपराह्न