ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 808/2011/248
मंगलवार, १३ दिसम्बर २०११
'चाहे ज़िंदगी से कितना भी भाग...’ : सी. रामचन्द्र
श्रृंखला ‘आधी हक़ीक़त आधा फसाना’ की आठवीं कड़ी में एक बार पुनः आपका स्वागत है। यह श्रृंखला हमने फ़िल्मकार राज कपूर के ८७वें जन्म-दिवस के उपलक्ष्य में आपके लिए आयोजित किया है। राज कपूर सही अर्थों में स्वतंत्र भारत के सपनों के सौदागर थे। उनकी फिल्मों के कथानक और चरित्र सामाजिक यथार्थ भूमि में जन्म लेते थे, परन्तु उनका ऊपरी स्वरूप फंतासी की तरह दिखता था। जीवन की विसंगतियों से भाग कर आए हुए दर्शक फंतासी के नेत्ररंजक स्वरूप में मनोरंजन पाते और प्रबुद्ध दर्शक सामाजिक सन्दर्भ और पात्रों की मानवीयता से अभिभूत हो जाते। हक़ीक़त और फसाना का यह सन्तुलन राज कपूर की निर्मित फिल्मों के साथ-साथ अभिनीत फिल्मों में भी उपस्थित रहा है।
आज हम आपको राज कपूर की अभिनीत फिल्म ‘शारदा’ में उनके चरित्र के माध्यम से इस सन्तुलन-प्रक्रिया को स्पष्ट करने का प्रयास करेंगे। फिल्म ‘शारदा’ १९५७ में बनी थी, जिसके निर्माता-निर्देशक एल.बी. प्रसाद और संगीतकार थे सी. रामचन्द्र। परन्तु फिल्म के गीत-संगीत से पहले थोड़ी चर्चा फिल्म के कथानक और चरित्रों को रेखांकित करना आवश्यक है। भारतीय सामाजिक सम्बन्धों की पड़ताल करती इस फिल्म की कथा सदाशिव ब्राह्मण और पी. शेट्टी ने, पटकथा इन्दरराज ने तथा संवाद विश्वामित्र आदिल ने लिखे थे। फिल्म की पटकथा के अनुसार वास्तव में यह नारी चरित्र प्रधान फिल्म है। फिल्म में नायिका शारदा की भूमिका अत्यन्त संवेदनशील अभिनेत्री मीना कुमारी द्वारा अभिनीत की गई थी। नायिका को भारतीय आध्यात्म और भारतीय परम्परा के के प्रति गहरी आस्था है। एक प्राकृतिक चिकित्सा आश्रम में सेविका के रूप में कार्य करने के दौरान वह चंचल, किन्तु निश्छल हृदय नायक शेखर (राज कपूर) के प्रति आकर्षित होती है। विदेश यात्रा के दौरान विमान दुर्घटना में शेखर की मृत्यु के समाचार और सामाजिक मर्यादा से बंधी शारदा के सामने ऐसी परिस्थिति उत्पन्न होती है कि अगले क्षण नायक की प्रेमिका से विमाता (सौतेली माँ) बन जाती है। उधर नायक विमान दुर्घटना से जीवित बच कर वापस लौट आता है। वापस लौटने पर शेखर के सामने शारदा प्रेमिका से माँ की भूमिका में बदली हुई नज़र आती है। शेखर इस विसंगति को सह नहीं पाता और शराब में डूब जाता है। राज कपूर ने फिल्म के अपने चरित्र की विविधता को कुशलता से जिया है। नायिका प्रधान कथानक होने के बावजूद राज कपूर ने प्रेमिका और माँ के अन्तर्द्वंद्व को जिस खूबी से प्रस्तुत किया, उसने फिल्म ‘शारदा’ को छठें दशक की श्रेष्ठतम फिल्मों की श्रेणी में ला दिया।
फिल्म ‘शारदा’ के गीतकार राजेन्द्र कृष्ण और संगीतकार सी. रामचन्द्र थे। इस दौर में संगीतकार सी. रामचन्द्र के प्रतिद्वंद्वी शंकर-जयकिशन और ओ.पी. नैयर तत्कालीन जनरुचि के अनुकूल संगीत-रचना कर रहे थे। इसके बावजूद उन्होने फिल्म ‘शारदा’ में अविस्मरणीय संगीत रचे। हल्की-फुल्की धुन में- ‘जप जप जप रे...’, कीर्तन शैली में- ‘निखिल भुवन पालम...’, लता मंगेशकर के स्वर में कर्णप्रिय गीत- ‘ओ चाँद जहाँ वो जाएँ...’ आदि अपने समय के अत्यन्त लोकप्रिय गीतों की सूची में रहे हैं। परन्तु शब्दों के प्रेरक भाव, आकर्षक धुन और फिल्म के प्रसंग की सार्थक अभिव्यक्ति करता गीत- ‘चाहे ज़िन्दगी से कितना भी भाग रे...’ फिल्म का एक आदर्श गीत सिद्ध हुआ। आज हम आपको राज कपूर द्वारा अभिनीत, सी. रामचन्द्र का संगीतबद्ध और मानना डे का गाया यही गीत सुनवाएँगे। सी. रामचन्द्र, मुकेश की गायकी को पसन्द नहीं करते थे, इसके बावजूद राज कपूर के कारण उन्होने मुकेश को शामिल किया। परन्तु उन्होने मुकेश से फिल्म के हल्के-फुल्के गीत गवाये और गम्भीर गीत मन्ना डे के हिस्से में आए। लीजिए, फिल्म ‘शारदा’ का यह गीत आप भी सुनिए-
गीत -‘चाहे ज़िन्दगी से कितना भी भाग रे...’ : फिल्म – शारदा : संगीत – सी. रामचन्द्र
क्या आप जानते हैं... कि संगीतकार सी. रामचन्द्र, मुकेश की गायकी को भले ही पसन्द न करते रहे हों, परन्तु अपने आराध्य साईं बाबा के लिए जो गैर-फिल्मी गीत उन्होने संगीतबद्ध किया था, वह मुकेश से ही गवाया था।
कृष्णमोहन मिश्र
4 टिप्पणियाँ
- कहाँ व्यस्त हो गईं इन्दु जी?
- indu puri ने कहा…
- यह बताइए, मेरा कल वाला कमेन्ट कहाँ गया? मैंने फिल्म,गाना और संगीतकार तीनो को पहचान लिया था. अफ़सोस! आज की पोस्ट मे उत्तर को लेकर कोई रिस्पोंस न देखकर कल की पोस्ट पर गई तो वहाँ किसी का कोई कमेन्ट नही दिख रहा. 'स्पैम' मे तो नही चला गया कहीं देखिये प्लीज़. राम गांगुली जी शंकर जयकिशन जी के असिस्टेंट रहे थे. और यही आज का उत्तर है. लोक कर दीजिए, मेरे तो आग लग गई सपनो मे अपने नम्बर यूँ डूबते देख हा हा हा... अब......देखो, ऐसिच हूँ मैं तो. मैं नीमच से अभी हांल आई ही हूँ. मधुमेह का असर कोर्निया या रेटिना पर तो नही होने लगा, बस यही चेक करवाना था. डॉक्टर को 'आँखे दिखाई' उन्होंने 'आँखों मे झाँका' और कहा -'तेरे मस्त मस्त दो नैन ..' इनमे कोई प्रोब्लम नही है. हा हा हा...मैं तो ये भागी 'आँखे चुरा कर' हा हा...
- indu puri ने कहा…
- arre! mera comment fir gayb! dekhiye pliz 'spam' me pada ro raha hoga.use sahi jagah chipka dijiye na.
- इंदू जी बिलकुल सही कह रहीं हैं. दरअसल उनसे डरकर सारे कमेन्ट स्पैम में चले गए. इंदू जी देखिये, मैं सबको वापस बुला लाया. अवध जी का एक कमेन्ट भी स्पैम में था.