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Saturday, 14 April 2012

'अपने सुरों में मेरे सुरों को बसा लो' 4

गीत मन्ना डे के

Apr 27, 2011 

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 644/2010/344

'सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है...' - एक मुश्किल प्रतियोगिता के दौर में भी मन्ना दा ने अपनी खास पहचान बनाई 

सु-गन्धर्व मन्ना डे पर केन्द्रित हमारी श्रृंखला 'अपने सुरों में मेरे सुरों को बसा लो' की चौथी कड़ी में आपका स्वागत है। मन्ना डे को फिल्मों में प्रवेश तो मिला किन्तु एक लम्बे समय तक वो चर्चित नहीं हो सके। इसके बावजूद उन्होंने उस दौर की धार्मिक-ऐतिहासिक फिल्मों में गाना, अपने से वरिष्ठ संगीतकारों का सहायक रह कर तथा अवसर मिलने पर स्वतंत्र रूप से भी संगीत निर्देशन करना जारी रखा। अभी भी उन्हें उस एक हिट गीत का इन्तजार था जो उनकी गायन क्षमता को सिद्ध कर सके। थक-हार कर मन्ना डे ने वापस कोलकाता लौट कर कानून की पढाई पूरी करने का मन बनाया। उसी समय मन्ना डे को संगीतकार सचिन देव बर्मन के संगीत निर्देशन में फिल्म 'मशाल' का गीत -"ऊपर गगन विशाल, नीचे गहरा पाताल..." गाने का अवसर मिला। गीतकार प्रदीप के भावपूर्ण साहित्यिक शब्दों को बर्मन दादा के प्रयाण गीत की शक्ल में, आस्था भाव से युक्त संगीत का आधार मिला और जब यह गीत मन्ना डे के अर्थपूर्ण स्वरों में ढला तो गीत ज़बरदस्त हिट हुआ। इसी गीत ने पार्श्वगायन के क्षेत्र में मन्ना डे को फिल्म जगत में न केवल स्थापित कर दिया बल्कि रातो-रात पूरे देश में प्रसिद्ध कर दिया। 'मशाल' के प्रदर्शन अवसर पर गीतों का जो रिकार्ड जारी हुआ था उसमे गीत का एक अन्तरा शामिल नहीं था, किन्तु गीत की सफलता के बाद रिकार्ड कम्पनी ने पूरा गीत जारी किया।

आमतौर पर जब किसी कलाकार को रातो-रात सफलता मिलती है तो वह अभिमानी होने से बच नहीं पाता, किन्तु मन्ना डे को संगीत साधना कर, गुरुजनों के आशीष पाकर और अपनी संगीत-निष्ठा के बल पर सफलता मिली थी। मन्ना डे ने जिस विनम्र भाव से फिल्मों में प्रवेश किया था वह विनम्रता उनके स्वभाव में आज भी है। पत्रकार अनुराधा सेनगुप्ता से एक बातचीत में उन्होंने कहा था- "मैंने अपने कार्य के प्रति पूरी ईमानदारी बरतने का प्रयास किया। गाना कोई भी हो मैंने अपना शत-प्रतिशत देने का प्रयास किया। गाने किसी भी भाषा के हों, उनके शब्दों के अर्थ जब तक मुझे समझ में न आ जाए और संगीत निर्देशक के साथ जब तक रिहर्सल नहीं होता, मैं रिकार्डिंग शुरू नहीं करता"। अपने इन्हीं गुणों के कारण मन्ना डे समकालीन गायक कलाकारों और संगीतकारों के प्रिय थे। संगीतकार सचिन देव बर्मन और अनिल विश्वास का कहना था- "मन्ना डे अपने समकालीन गायकों- रफ़ी, किशोर, मुकेश और तलत के किसी भी गाने को गा सकते हैं किन्तु यह सभी लोग कंठ-स्वर और तकनीकी कौशल की दृष्टि से मन्ना डे के गाने नहीं गा सकते।" पुरुष पार्श्वगायकों में मोहम्मद रफ़ी उनके सबसे बड़े प्रतिद्वन्द्वी थे, किन्तु यह भी आश्चर्यजनक सत्य है कि दोनों गहरे मित्र भी थे। टेलीविजन के एक संगीत प्रतिभा खोज कार्यक्रम में युवा गायक सोनू निगम से मन्ना डे ने कहा था- "रफ़ी साहब से मेरा परिचय तब हुआ जब उन्होंने मेरे संगीत निर्देशन में कोरस में गाया था। वह जितने अच्छे गायक थे उतने ही अच्छे इन्सान भी थे। फिल्म पार्श्व गायन के क्षेत्र में वो स्वयं एक घराना थे। हम दोनों बांद्रा में पास-पास रहते थे और पतंग उड़ाने का शौक हम दोनों को था। मैं हमेशा उनकी पतंग काट देता था। एक दिन उन्होंने मुझसे पूछा कि हर बार उनकी पतंग ही क्यों कट जाती है, उनके इस सवाल पर मैंने उनसे कहा कि आप जैसे सीधे और सरल हैं, वैसे ही पतंग उड़ाने के मामले में भी हैं। आपको पेंच लड़ाना नहीं आता"।

मोहम्मद रफ़ी भी मन्ना डे का बहुत सम्मान करते थे। एक बार पत्रकारों से बात करते हुए रफ़ी ने कहा था- "आप लोग मेरे गाये गाने सुनते हैं और मैं सिर्फ मन्ना डे को सुनता हूँ"। मन्ना डे ने मोहम्मद रफ़ी के साथ लगभग एक सौ से अधिक गाने गाये हैं, जिनमें से कुछ गीत तो लोकप्रियता के शिखर पर हैं। फिल्म 'बरसात की रात' की कव्वाली - "ये इश्क इश्क है....." तथा फिल्म 'परिवरिश' का हास्य गीत -"मामा ओ मामा..." में विषय की विविधता है। राग आधारित गीतों की श्रेणी में मोहम्मद रफ़ी के साथ मन्ना डे ने तीन उल्लेखनीय गीत गाये हैं। 1960 में बनी फिल्म 'कल्पना' में संगीतकार ओ.पी. नैयर ने दोनों दिग्गजों से गीत -"तू है मेरा प्रेम देवता...." गवाया था। यह राग 'ललित' पर आधारित एक मोहक गीत है। इस गीत में खास बात यह भी है कि पूरा गीत 'तीन ताल' में है जबकि अन्तरे के बीच में दक्षिण भारतीय ताल का प्रयोग हुआ है। इस जोड़ी का दूसरा गीत -"सुध बिसर गयी आज...." फिल्म 'संगीत सम्राट तानसेन' का है। 1962 में बनी इस फिल्म के संगीत निर्देशक एस.एन. त्रिपाठी नें इस गीत को राग 'हेमन्त' के स्वरों में और फिल्मों में कम प्रचलित ताल 'झपताल' में ढाला है। मोहम्मद रफ़ी के साथ मन्ना डे का गाया तीसरा गीत 1965 में बनी मनोज कुमार की फिल्म 'शहीद' का है। इस गीत में तीसरा स्वर सुप्रसिद्ध ग़ज़ल गायक राजेन्द्र मेहता का है। देश की आज़ादी के मतवालों द्वारा आततायियों को चुनौती देता यह गीत आज हमने आपको सुनाने के लिए चुना है। पहले आप यह गीत सुनिए-

फिल्म - शहीद : "सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है..." : संगीत प्रेम धवन


फिल्म 'शहीद' का यह गीत राग 'दरबारी कान्हड़ा' पर आधारित है। इसकी विशेषता यह है कि इस राग में अति कोमल 'गन्धार' और अति कोमल 'धैवत' स्वरों का बड़ा बारीक प्रयोग होता है, जिसकी अपेक्षा किसी सुगम अथवा फिल्म संगीत कि रचना में नहीं की जा सकती, किन्तु 'शहीद' के इस गीत में इन दोनों अति कोमल स्वरों का सटीक इस्तेमाल हुआ है, जिससे गीत की संवेदनशीलता बढ़ गई है, इसे सुन कर ही अनुभव किया जा सकता है।
 
खोज व आलेख- कृष्णमोहन मिश्र



Posted 27th April 2011 by Sajeev Sarathie