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Saturday, 14 April 2012

"अपने सुरों में मेरे सुरों को मिला लो" 1

गीत मन्ना डे के

Apr 24,2011 

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 641/2010/341





'दूर है किनारा..' :  किनारा ढूँढती मन्ना दा की आवाज़ 

'ओल्ड इस गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! मैं, सुजॉय चटर्जी, आप सभी का इस स्तम्भ में फिर एक बार स्वागत करता हूँ। यूँ तो इस श्रृंखला का वाहक मैं और सजीव जी हैं, लेकिन समय-समय पर आप में से कई श्रोता-पाठक इस स्तम्भ के लिए उल्लेखनीय योगदान करते आये हैं, चाहे किसी भी रूप में क्यों न हो! यह हमारा सौभाग्य है कि हाल में हमारी जान-पहचान एक ऐसे वरिष्ठ कला समीक्षक से हुई, जो अपने लम्बे कैरियर के बेशकीमती अनुभवों से हमारा न केवल ज्ञानवर्धन कर रहे हैं, बल्कि 'सुर-संगम' स्तम्भ में भी अपना अमूल्य योगदान समय-समय पर दे रहे हैं। और अब 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के लिए एक पूरी की पूरी श्रृंखला के साथ हाज़िर हैं। आप हैं लखनऊ के श्री कृष्णमोहन मिश्र। तो दोस्तों, आइए अगले दस अंकों के लिए 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का आनन्द लें,  कृष्णमोहन जी के साथ।
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'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी श्रोता-पाठकों का मैं, कृष्णमोहन मिश्र, एक नई श्रृंखला में स्वागत करता हूँ। भारतीय फिल्मों ने जब से बोलना सीखा, तब से ही गीत-संगीत उसकी आवश्यकता भी थी और विशेषता भी। सवाक फिल्मों के पहले दशक (1931-1941) के संगीतकारों नें फिल्म संगीत में शास्त्रीय और लोक तत्वों का जो बीजारोपण किया, उसका प्रतिफल दूसरे और तीसरे दशक (1941-1961) की अवधि में खूब मुखर होकर सामने आया। दूसरे दशक में पुरुष गायक- मन्ना डे, मोहम्मद रफ़ी, मुकेश, किशोर कुमार और तलत महमूद जैसे समर्पित गायकों का आगमन हुआ, जिन्होंने अगले कई दशकों तक फिल्म संगीत-जगत पर एकछत्र शासन किया। इसी दशक की कोकिलकंठी लता मंगेशकर और वैविध्यपूर्ण गायन शैली के धनी मन्ना डे आज भी हमारे बीच फिल्म संगीत के सजीव इतिहास के रूप में उपस्थित हैं। ऐसे ही बहुआयामी प्रतिभा के धनी मन्ना डे के व्यक्तित्व और कृतित्व पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की यह लघु श्रृंखला "अपने सुरों में मेरे सुरों को मिला लो" आज से शुरू हो रही है। रविवार 1 मई को मन्ना डे 92 वर्ष के हो जाएँगे। यह श्रृंखला हम उनके जन्मदिन के उपलक्ष्य में उनके स्वस्थ और दीर्घायु होने की कामना के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं। 
1 मई, 1919 को कलकत्ता (अब कोलकाता) के एक सामान्य मध्यवर्गीय संयुक्त परिवार में जन्में मन्ना डे का वास्तविक नाम प्रबोधचन्द्र डे था। 'मन्ना' उनका घरेलू नाम था। आगे चलकर वो इसी नाम से प्रसिद्ध हुए। मन्ना डे के पिता का नाम पूर्णचन्द्र डे, माता का नाम महामाया डे तथा चाचा का नाम कृष्णचन्द्र डे (के.सी. डे) था, जो गायक और संगीत शिक्षक के रूप में विख्यात थे। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा इन्दुबाबूर पाठशाला (इन्दुबाबू की पाठशाला) से, माध्यमिक शिक्षा स्कोटिश चर्च कालेज से तथा स्नातक की पढ़ाई विद्यासागर कालेज से हुई। बचपन में मन्ना डे को खेलकूद में काफी रूचि थी। उनका प्रिय खेल फुटबाल, कुश्ती और मुक्केबाजी रहा। अपनी इस रूचि के कारण वो अपने साथियों के बीच काफी लोकप्रिय थे। मन्ना डे को संगीत के प्रति अनुराग चाचा के.सी.डे की प्रेरणा से ही विरासत में प्राप्त हुआ। इण्टरमिडिएट में पढाई के दिनों में उनके संगीत प्रतिभा की चर्चा साथियों के बीच खूब होती थी। होता यह था कि खाली समय या मध्यान्तर में मन्ना डे को उनके साथी कक्षा में घेर कर बैठ जाते थे। मन्ना डे मेज को ताल वाद्य बना लेते और फिर गाने का सिलसिला शुरू हो जाता। इसी दौरान मन्ना डे नें अन्तरविद्यालय संगीत प्रतियोगिता के तीन वर्गों में भाग लिया और तीनों वर्गों में उन्हें प्रथम स्थान मिला। पहले तो उन्हें चाचा के.सी. डे ही संगीत का पाठ पढ़ाते थे लेकिन उनकी बढ़ती रुझान देखते हुए चाचा ने विधिवत संगीत शिक्षा दिलाने कि व्यवस्था कर दी। मन्ना डे पढाई में तो अच्छे थे ही, अच्छा गाने के कारण भी वो कालेज में खूब लोकप्रिय हो गए थे। स्नातक की परीक्षा में सफल होने के बाद मन्ना डे के सामने दो रास्ते खुले हुए थे। पहला यह कि कानून की पढाई कर बैरिस्टर बना जाये और दूसरा, चाचा की छत्र-छाया में संगीत क्षेत्र में भाग्य आजमाया जाये। काफी सोच-विचार के बाद मन्ना डे ने दूसरा रास्ता चुना और अपने चाचा के साथ मायानगरी मुम्बई की ओर चल पड़े।
यहाँ थोडा रुक कर हम मन्ना डे की उस समय की मनोदशा का अनुमान लगाते है- 'सौदागर' फिल्म के इस गीत के माध्यम से।

'दूर है किनारा...' : फिल्म - सौदागर : गीत-संगीत : रवीन्द्र जैन
http://www.youtube.com/watch?v=m0DSOGhuo4w

1973 में प्रदर्शित इस फिल्म में मन्ना डे ने बंगाल की बेहद चर्चित माँझी गीतों की भटियाली धुन में इस गीत को गाया है| फिल्म के संगीतकार रवीन्द्र जैन हैं। टेलीविजन के एक चैनल पर 'इण्डियन एक्सप्रेस' के सम्पादक शेखर गुप्ता से अपने साक्षात्कार में मन्ना डे नें फिल्म 'सौदागर' के इस गीत के बारे में कहा था- बचपन से ही हुगली नदी के प्रति मेरा विशेष लगाव रहा है। माँझी गीतों की लोक धुन बचपन से ही मन में बसी है। सौदागर अमिताभ बच्चन की प्रारम्भिक फिल्मों मे से एक अच्छी फिल्म है। संगीतकार रवीन्द्र जैन की धुन भी बहुत अच्छी है | यह सब कुछ मेरे लिए इतना अनुकूल था कि सचमुच एक अच्छा गीत तैयार हो गया

कृष्णमोहन मिश्र




Posted 24th April 2011 by Sajeev Sarathie