Saturday 31 December 2011

आधी हकीकत आधा फसाना 3




मंगलवार, ६ दिसम्बर २०११

ओल्ड इस गोल्ड श्रृंखला # 803/2011/243



बहारों ने जिसे छेड़ा... :  ज्ञानदत्त

धी हक़ीक़त आधा फसाना श्रृंखला के अन्तर्गत इन दिनों हम सुप्रसिद्ध फ़िल्मकार राज कपूर की फिल्म-यात्रा के कुछ ऐसे पड़ावों की चर्चा कर रहे हैं, जिनमें संगीत के प्रति उनके अनुराग और चिन्तन का रेखांकन हुआ है। पिछले अंकों में हम यह चर्चा कर चुके हैं कि राज कपूर को संगीत संस्कारगत प्राप्त हुआ था। बचपन में अपनी माँ से, किशोरावस्था में न्यू थिएटर्स के संगीत कक्ष से और युवावस्था में अपने पिता के पृथ्वी थिएटर के नाटकों से प्राप्त संगीत राज कपूर के रग-रग में बसा हुआ था। अपनी पहली फिल्म आग के लिए उन्होने पृथ्वी थियेटर के संगीतकार राम गांगुली को चुना था। इस फिल्म में शंकर और जयकिशन, संगीत दल में मात्र एक वादक थे। अपनी अगली फिल्म बरसात के लिए राज कपूर ने शंकर-जयकिशन को ही संगीतकार के रूप में चुना। कहने की आवश्यकता नहीं कि इस फिल्म का संगीत बेहद लोकप्रिय हुआ था। बरसात (१९४९) से लेकर मेरा नाम जोकर (१९७०) तक, पूरे २१ वर्षों तक शंकर-जयकिशन, राज कपूर की २० फिल्मों के सफल संगीतकार रहे। इसके बाद आर.के. की फिल्मों में बॉबी’, सत्यं शिवं सुन्दरम्, प्रेम रोग और प्रेम ग्रन्थ संगीतकार लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल तथा राम तेरी गंगा मैली और हिना के संगीतकार रवीन्द्र जैन थे। इस श्रृंखला में हम राज कपूर के सर्वाधिक लोकप्रिय संगीतकारों के स्थान पर उनके फिल्मी सफर के प्रारम्भिक एक दशक के उन संगीतकारों की चर्चा कर रहे हैं, जिनका गहरा प्रभाव राज कपूर पर पड़ा।   
१९४९ में जब राज कपूर फिल्म बरसात के निर्माण में व्यस्त थे उसी समय वे तीन अन्य निर्माताओं की फिल्मों- सुनहरे दिन’, परिवर्तन और अन्दाज़ में अभिनेता के रूप में भी कार्य कर रहे थे। इतनी व्यस्तता के बावजूद उन्होने किसी भी फिल्म में अपने अभिनय का स्तर गिरने नहीं दिया। इस वर्ष की फिल्मों में से आज हम फिल्म सुनहरे दिन में राज कपूर की भूमिका की और फिल्म के एक गीत के माध्यम से इस फिल्म के विस्मृत संगीतकार ज्ञानदत्त की चर्चा करेंगे। १९४९ में प्रदर्शित फिल्म सुनहरे दिन का निर्माण जगत पिक्चर्स ने किया था, जिसके निर्देशक सतीश निगम थे। फिल्म में राज कपूर की भूमिका एक रेडियो गायक की थी। अपने श्रोताओं के बीच यह गायक चरित्र बेहद लोकप्रिय है। इस फिल्म का संगीत वर्तमान में लगभग विस्मृत संगीतकार ज्ञानदत्त ने दिया था।
चौथे और पाँचवे दशक के चर्चित संगीतकार ज्ञानदत्त, का फिल्मी सफर रणजीत मूवीटोन से आरम्भ हुआ था। १९३७ में प्रदर्शित तूफानी टोली उनकी पहली फिल्म थी। श्रृंगार रस से परिपूर्ण संगीत रचने में उनका कोई प्रतिद्वंद्वी नहीं था। उनकी चौथे दशक की फिल्मों की प्रमुख गायिका वहीदन बाई (अपने समय की सुप्रसिद्ध अभिनेत्री निम्मी की माँ) थीं। संगीत की दृष्टि से अनेक सफल फिल्मों की सगीत रचना करने के बाद पाँचवे दशक के अन्त में ज्ञानदत्त ने राज कपूर द्वारा अभिनीत फिल्म सुनहरे दिन की संगीत-रचना की थी। इस फिल्म का संगीत ज्ञानदत्त के लिए विशेष उल्लेखनीय रहा। लोकप्रियता की दृष्टि से उस वर्ष की फिल्मों में राज कपूर द्वारा निर्मित, निर्देशित और अभिनीत बरसात तथा केवल अभिनीत फिल्म सुनहरे दिन के गीत शीर्ष पर थे। सुनहरे दिन का नायक चूँकि रेडियो-गायक है, अतः ज्ञानदत्त ने इन गीतों में वाद्यवृन्द (आर्केस्ट्रा) का अत्यंत आकर्षक प्रयोग किया है। इस फिल्म में ज्ञानदत्त ने राज कपूर के लिए मुकेश को गायक के रूप में अवसर दिया था। मुकेश और राज कपूर एक ही गुरु से संगीत सीखने जाया करते थे। फिल्म आग में मुकेश और राज कपूर की जोड़ी साथ थी, किन्तु इन दोनों के आवाज़ की स्वाभाविकता का अनुभव फिल्म सुनहरे दिन के गीतों से हुआ। फिल्म में मुकेश के साथ सुरिन्दर कौर और शमशाद बेग़म की आवाज़ें हैं। फिल्म सुनहरे दिन के गीतों में मुकेश और सुरिंदर कौर की आवाज़ों में- दिल दो नैनों में खो गया...’, लो जी सुन लो...’, मुकेश और शमशाद बेग़म के स्वरों में- मैंने देखी जग की रीत... अत्यन्त लोकप्रिय गीत सिद्ध हुए, रन्तु जो लोकप्रियता मुकेश के एकल स्वर में प्रस्तुत गीत- बहारों ने जिसे छेड़ा है वो साजे जवानी है... को मिली, उससे अपने समय में यह एक उल्लेखनीय गीत बन गया थाआज हम आपको यही गीत सुनवाएँगे। सुनहरे दिन संगीतकार ज्ञानदत्त के फिल्मी सफर की सफलतम फिल्म थी। इस फिल्म के बाद ज्ञानदत्त की संगीतबद्ध फिल्में व्यावसायिक रूप से असफल होती गई। अन्ततः वर्ष १९६५ में फिल्म जनम-जनम के साथी के साथ उन्होने अपने संगीतकार-जीवन से विराम ले लिया। ३दिसम्बर, १९७४ को संगीतकार ज्ञानदत्त का निधन हुआ था। आइए आज हम आपको सुनवाते हैं, ज्ञानदत्त द्वारा संगीतबद्ध वह ऐतिहासिक गीत, जिसने गायक मुकेश और अभिनेता राज कपूर की जोड़ी को स्थायित्व दिया। गीतकार हैं, शेवन रिजवी।

गीत -‘बहारों ने जिसे छेड़ा है...’ : फिल्म – सुनहरे दिन : संगीत – ज्ञानदत्त


क्या आप जानते हैं... कि वर्ष १९४९ में फिल्म सुनहरे दिन और बरसात के साथ-साथ राज कपूर ने दिलीप कुमार और नरगिस  के साथ फिल्म अंदाज़ में भी अभिनय किया था। इस फिल्म के संगीतकार नौशाद थे। फिल्म के एक गीत- उठाए जा उनके सितम... की रिकार्डिंग के समय राज कपूर भी स्टुडियो में उपस्थित थे। उन्होने जब लता मंगेशकर के स्वर सुने तो वहीं स्टुडियो में ही अपनी फिल्म बरसात में गाने के लिए राजी कर लिया।

कृष्णमोहन मिश्र
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3 टिप्पणियाँ


ब्लॉगर indu puri ने कहा…
खयालों मे किसी के इस तरह बिना बुलाये आओगे तो ठुकराये ही जाओगे, बाबु! दुनिया का दस्तूर है. समझ नही आई बात? मेरे बावरे नैन क्या कहते हैं?  हा हा हा... इनसे पूछो. मैं न बोलू तो यह बोल देते है. सब कुछ.रोशन जी के संगीत को भी पहचानते हैं. सच्ची.  ऐसिच हूँ मैं भी तो हा हा हा...
६ दिसम्बर २०११ ९:३४ अपराह्न
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ब्लॉगर AVADH ने कहा…
अरे इंदु बहिन. दुनिया का दस्तूर यही है, यह बात तो ठीक है, पर कभी कभी 'गीता' के सन्देश को भी तो याद करना चाहिए. अवध लाल
७ दिसम्बर २०११ १:०७ अपराह्न
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ब्लॉगर कृष्णमोहन ने कहा…
वाह ! इन्दु जी और अवध जी, लगता है, मित्रों का पिछला दौर वापस लौट रहा है।
७ दिसम्बर २०११ २:४२ अपराह्न


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